‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

निरंकुश हो चला है समाज

   
दिल्ली में  जो हुआ,
जोरदार तमाचा है देश और धरम को ।
जितना लताड लगाई जाये,
कम है दरिंदों की इस करम को ।।

जिम्मेदार है केवल शासन प्रशासन,
मिटा दे इस भरम को ।
नैतिकता की नही किसी को भान,
अनैतिकता पहुंच गई है चरम को ।।

निरंकुश हो चला है समाज,
मौन पनाह दे रहे है इस शरम को ।
नही करता कोई आज,
प्रयास कोई ऐसा मिटाने इस जलन को ।।

नग्नतावाद की संस्कृति जो आयातीत हुआ,
तुला है जड़ से मिटाने हमारे चाल चलन को ।
पाश्चात्यवाद की आंधी,
व्याधि बन खोखला कर रहा है हमारे मरम को ।।

कानून चाहे सख्त से सख्त हो,
मिटा न पायेगा समाज के इस कलंक को ।
मिटाना हो गर ये अभिषाप,
तो जगाना होगा संस्कार, हया, शरम को ।।।
................‘‘रमेश‘‘........................

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