दिल्ली में जो हुआ,
जोरदार तमाचा है देश और धरम को ।
जितना लताड लगाई जाये,
कम है दरिंदों की इस करम को ।।
जिम्मेदार है केवल शासन प्रशासन,
मिटा दे इस भरम को ।
नैतिकता की नही किसी को भान,
अनैतिकता पहुंच गई है चरम को ।।
निरंकुश हो चला है समाज,
मौन पनाह दे रहे है इस शरम को ।
नही करता कोई आज,
प्रयास कोई ऐसा मिटाने इस जलन को ।।
नग्नतावाद की संस्कृति जो आयातीत हुआ,
तुला है जड़ से मिटाने हमारे चाल चलन को ।
पाश्चात्यवाद की आंधी,
व्याधि बन खोखला कर रहा है हमारे मरम को ।।
कानून चाहे सख्त से सख्त हो,
मिटा न पायेगा समाज के इस कलंक को ।
मिटाना हो गर ये अभिषाप,
तो जगाना होगा संस्कार, हया, शरम को ।।।
................‘‘रमेश‘‘........................
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