है कौन सा जुनुन सवार तुझ पर, जो कतले आम मचाते हो,
है कौन सा धरम तुम्हारा, जो इंनसानियत को ही नोच खाते हो ।
क्या मिला है अभी तक आगें क्या मिल जायेगा,
क्यों करते हो कत्ले आम समझ में तुम्हे कब आयेगा ।
निर्बल, अबला, असहायों पर छुप कर वार क्यों करते हो,
अपने संकीर्ण विचारों के चलते, दूसरों का जीवन क्यों हरते हो ।
अपनों को निरीह मनुश्यों का मसीहा क्यों कहते हो,
जब उनके ही विकास पथ पर जब काटा तुम बोते हो ।
नहीं सुनना जब किसी की तो अपनी बात दूसरो पर क्यों मढ़ते हो,
लोकतंत्र की जड़े काट काट स्वयं तानाषाह क्यों बनते हो ।
कौन तुम्हे सीखाता ये पाठ जो कायरता तुम करते हो ,
कोई मजहब नहीं सीखता, खून से खेलना जो तुम खेला करते हो ।
............‘‘रमेश‘‘.........................
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