‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

मन का साथी

  
धड़कन में,
धड़कती है तू ही,
श्वास प्रश्वास बन ।


जीवन मेरा,
सांसो से ही हीन है,
जीना कैसे हो ।

मेरी पूजा तू,
प्रेम अराधन तू,
रब जैसे हो ।


मेरा जीवन,
नीर बिना मछली,
जीना जैसे हो ।

चंद्रमा बीन,
पूर्णमासी का रात,
भला कैसे हो ।

तुझ बिन मै,
लव बीन दीपक,
साथ जैसे हो ।

मन का साथी,
चिड़या सा चहको,
खुला आंगन ।
-रमेशकुमार सिंह चैहान

मधुर मधुर याद

मधुर मधुर याद है आती, मन को नये पंख लगाती ।
संस्मरण आकाश में उड़ती, मन कलरव गानसुनाती ।।

बालगीत गाकर मुझको मां के गोद में सुलाती ।
लोरी गा थपकी दे कर नींदिया को है बुलाती ।

मित्रों की आवाज दे बचपना याद दिला रहे  ।
कंचे, गिल्ली-डंडा,  सब कुछ याद आ रहे ।

स्कूल का बस्ता, गुरूजी का बेद कहां भुलाये ।
 गुरूजी का ज्ञान जीवन में आज काम आये  ।

स्कूल का सुंदर चित्र उमड़ घुमड़ रहा है ।
साथीयों का  मस्ती यादें उधेंड़ रहा है ।

खिला था जब जीवन में प्यार का मधु अंकुर ।
ओ हंसना, ओ मुस्कुराना और बातों में मस्गुल ।

किसी से आंखे चार हुआ था, हमें किसी से प्यार हुआ था ।
जिसको हमने और जिसने हमको अपने में जिया था ।

साथ में जीने मरने की बातें तो कहीं पर ओ हौसला कहां लिया था ।
घर परिवार और समाज के नाम अपना प्यार बलिदान किया था ।

नदी के दो किनारे बीच जीवन चंचल धारा सी बह रही है ।
ये मधुर यादें तो हैं जो संस्मरण के चिथडे को सी रही है ।

दिन रात के इस जीवन में एक नई रोषनी का आगमन हुआ ।
जीवन सहचरंणी का मेरे जीवन में प्रार्दापन हुआ  ।

ष्वेत जीवन तब तो रंगीन हुये, अब तो जीवन उसे के आधीन हुये ।
फुलवारी में सुंदर दो फूल खिले, जीवन की आस उसी से जा मिले ।

मन पक्षी उड़ते आकाष आ पहुॅचे पुनः मेरे पास ।
अब तो मै बैठा हूॅ दुनियादारी के चिंता में उदास ।।
................‘‘रमेश‘.................

जरूरी तो नही

देखते सुनते है जो हम अपने चारों ओर,                                   
विचारों में घुल मिल जाये जरूरी तो नही ।

विचारों में जो विचार घुल मिल जाये,
परिलक्षित हो कर्मो में जरूरी तो नही ।

हर परिलक्षित कर्म  कुलसित हो जाये,
कुलसित नजर आये जरूरी तो नही ।

जो अपने विचारों मे ही दृढ  हो जाये,
ऐसा हर व्यक्ति हो जरूरी तो नही ।


...‘‘रमेश‘‘...

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