मेरे मन मे वह बसी है किस तरह ,
फूलों में सुगंध समाई हो जिस तरह ।
अपने से अलग उसे करूं किस तरह,
समाई है समुद्र में नदी जिस तरह ।
उसके बिना अपना अस्तित्व है किस तरह,
नीर बीन मीन रहता है जिस तरह ।
उसकी मन ओ जाने मेरी है किस तरह,
देह का रोम रोम कहे राम जिस तरह ।
अलग करना भी चाहू किस तरह,
वह तो है प्राण तन में जिस तरह ।
..........रमेश‘......
फूलों में सुगंध समाई हो जिस तरह ।
अपने से अलग उसे करूं किस तरह,
समाई है समुद्र में नदी जिस तरह ।
उसके बिना अपना अस्तित्व है किस तरह,
नीर बीन मीन रहता है जिस तरह ।
उसकी मन ओ जाने मेरी है किस तरह,
देह का रोम रोम कहे राम जिस तरह ।
अलग करना भी चाहू किस तरह,
वह तो है प्राण तन में जिस तरह ।
..........रमेश‘......
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