‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

दोहे


लाभ हानि के प्रश्न तज, माने गुरु की बात ।
गुरु गुरुता गंभीर है, उलझन झंझावात ।।

सीख सनातन धर्म का, मातु पिता भगवान ।
जग की चिंता छोड़ तू, कर उनका सम्मान ।।

पढ़े लिखे हो घोर तुम, जो अक्रांता सुझाय ।
निज माटी के सीख को, तुम तो दिये भुलाय ।।

अपनी सारी रीतियां, कुरीति होती आज ।
परम्परा की बात से, तुमको आती लाज  ।।

इतने ज्ञानी भये तुम, पूर्वज लागे मूर्ख ।
बनके जेंटल मेन अब, कहते सबको धूर्त ।।

माना तेरे ज्ञान से, सरल हुये सब काम ।
पर समाज परिवार तो, रहा नहीं अब धाम ।।

गुरु गुरुता समझे नहीं, पाल रहे गुरुवाद ।
ध्‍येय धर्म को धरे नहीं, गढ़े पंथ नवजात ।।

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