1. शरम हया
लड़की का श्रृंगार
लड़को का क्या
लोक मर्यादा नोचे
इसको कौन सोचे ।
2. नर नारी का
समता वाजिब है
रसोई घर
चैका करे पुरूष
दफ्तर नारी साजे ।
3. सोचें हैं कभी
रूपहले पर्दे में
नग्नतावाद
कैसे पसारे पांव
मूक दर्शक आप ।
4. कम कपड़े
कोई क्यो पहनते
हवा खाना हो
नंगे होकर बैठें
पागल के समान ।
5. खुली चुनौती
वासना को देते
खुले बदन
बजा रहें हैं ढोल
मर्यादा साधे मौन ।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
लड़की का श्रृंगार
लड़को का क्या
लोक मर्यादा नोचे
इसको कौन सोचे ।
2. नर नारी का
समता वाजिब है
रसोई घर
चैका करे पुरूष
दफ्तर नारी साजे ।
3. सोचें हैं कभी
रूपहले पर्दे में
नग्नतावाद
कैसे पसारे पांव
मूक दर्शक आप ।
4. कम कपड़े
कोई क्यो पहनते
हवा खाना हो
नंगे होकर बैठें
पागल के समान ।
5. खुली चुनौती
वासना को देते
खुले बदन
बजा रहें हैं ढोल
मर्यादा साधे मौन ।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
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