एक दीप तुम द्वार पर, रख आये हो आज ।
अंतस अंधेरा भरा, समझ न आया काज ।।
आज खुशी का पर्व है, मेटो मन संताप ।
अगर खुशी दे ना सको, देते क्यों परिताप ।।
पग पग पीडि़त लोग हैं, निर्धन अरू धनवान ।
पीड़ा मन की छोभ है, मानव का परिधान ।।
काम सीख देना सहज, करना क्या आसान ।
लोग सभी हैं जानते, धरे नही हैं ध्यान ।।
मन के हारे हार है, मन से तू मत हार ।
काया मन की दास है, करे नही प्रतिकार ।।
बात ज्ञान की है बड़ी, कैसे दे अंजाम ।
काया अति सुकुमार है, कौन करेगा काम ।।
नुख्श खोजते क्यों भला, ज्ञानी पंडित लोग ।
अपनी गलती भूल कर, जग में करते खोज ।।
अंतस अंधेरा भरा, समझ न आया काज ।।
आज खुशी का पर्व है, मेटो मन संताप ।
अगर खुशी दे ना सको, देते क्यों परिताप ।।
पग पग पीडि़त लोग हैं, निर्धन अरू धनवान ।
पीड़ा मन की छोभ है, मानव का परिधान ।।
काम सीख देना सहज, करना क्या आसान ।
लोग सभी हैं जानते, धरे नही हैं ध्यान ।।
मन के हारे हार है, मन से तू मत हार ।
काया मन की दास है, करे नही प्रतिकार ।।
बात ज्ञान की है बड़ी, कैसे दे अंजाम ।
काया अति सुकुमार है, कौन करेगा काम ।।
नुख्श खोजते क्यों भला, ज्ञानी पंडित लोग ।
अपनी गलती भूल कर, जग में करते खोज ।।
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