1.
ढलती शाम
दिन का अवसान
देती विराम
भागम भाग भरी
दिनचर्या को
आमंत्रण दे रही
चिरशांति को
निःशब्द अव्यक्त
बाहें फैलाय
आंचल में ढक्कने
निंद में लोग
होकर मदहोश
देखे सपने
दिन के घटनाएं
चलचित्र सा
पल पल बदले
रोते हॅसते
कुछ भले व बुरे
वांछित अवांछित
आधे अधूरे
नयनों के सपने
हुई सुबह
फिर भागम भाग
अंधड़ दौड़
जीवन का अस्तित्व
आखीर क्या है
मृत्यु के शैय्या पर
सोच रहा मानव
गुजर गया
जीवन एक दिन
आ गई शाम
करना है आराम
शरीर छोड़ कर ।
2.
आत्मा अमर
शरीर छोड़कर
घट अंदर
तड़पती रहती
ऊहा पोह मे
इच्छा शक्ति के तले
असीम आस
क्या करे क्या ना करे
नन्ही सी आत्मा
भटकाता रहता
मन बावला
प्रपंच फंसकर
जग ढूंढता
सुख चैन का निंद
जगजाहिर
मन आत्मा की बैर
घुन सा पीसे
पंच तत्व की काया
जग की यह माया ।
ढलती शाम
दिन का अवसान
देती विराम
भागम भाग भरी
दिनचर्या को
आमंत्रण दे रही
चिरशांति को
निःशब्द अव्यक्त
बाहें फैलाय
आंचल में ढक्कने
निंद में लोग
होकर मदहोश
देखे सपने
दिन के घटनाएं
चलचित्र सा
पल पल बदले
रोते हॅसते
कुछ भले व बुरे
वांछित अवांछित
आधे अधूरे
नयनों के सपने
हुई सुबह
फिर भागम भाग
अंधड़ दौड़
जीवन का अस्तित्व
आखीर क्या है
मृत्यु के शैय्या पर
सोच रहा मानव
गुजर गया
जीवन एक दिन
आ गई शाम
करना है आराम
शरीर छोड़ कर ।
2.
आत्मा अमर
शरीर छोड़कर
घट अंदर
तड़पती रहती
ऊहा पोह मे
इच्छा शक्ति के तले
असीम आस
क्या करे क्या ना करे
नन्ही सी आत्मा
भटकाता रहता
मन बावला
प्रपंच फंसकर
जग ढूंढता
सुख चैन का निंद
जगजाहिर
मन आत्मा की बैर
घुन सा पीसे
पंच तत्व की काया
जग की यह माया ।