काट रहे उस साख को, जिसमें बैठे आप ।
कन्या को क्यो कोख में, कर देते हो साफ ।।
कन्या तो है सृष्टि की, इक अनुपम सौगात ।
माॅं बहना अरू पत्नि वह, मानव की अतिजात ।।
जीवन रथ के चक्र दो, इक नर दूजा नार ।
रख दोनो में संतुलन, जीवन धुरी सवार ।।
नारी ही मां होत है, जिससे चलती सृष्टि ।
करती रहती जो सदा, प्रेम सुधा की वृष्टि ।।
जीवन साथी चाहिये, हर नर को तो एक ।
यदि कन्या होगी नही, नर ना होंगे नेक ।।
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