‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

चार मुक्तक

1.बड़े बड़े महल अटारी और मोटर गाड़ी उसके पास
यहां वहां दुकान दारी  और खेती बाड़ी उसके पास ।
बिछा सके कही बिछौना इतना पैसा गिनते अपने हाथ,
नही कही सुकुन हथेली, चिंता कुल्हाड़ी उसके पास ।।

2.तुझे जाना कहां है जानता भी है ।
चरण रख तू डगर को मापता भी है ।।
वहां बैठे हुये क्यों बुन रहे सपने,
निकल कर ख्वाब से तू जागता भी है ।

3.कोई सुने ना सुने राग अपना सुनाना है ।
रह कर अकेले भी अपना ये महफिल सजाना है ।
परवाह क्यों कर किसी का करें इस जमाने में
औकात अपनी भी तो इस जहां को दिखाना है ।।

4.खून पसीना सा जो बहाते, वीर ऐसा नही देखा ।
पेट भरे जो तो दूसरो का, धीर ऐसा नही देखा ।
अन्न उगाते जो चीर कर धरती, कृषक कहाते हैं ।
विष भी पचाते है जो धरा में, हीर ऐसा नही देखा ।  हीर-शंकर जी

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