उनको थोड़ा दर्द हो, होती मुझको पीर ।
यूं ही मेरी अंखिया, छलका देती नीर ।।
मेरा मेरा सब कहे, किसका है संसार ।
छोड़ इसे पर लोग क्यों, जाये बेड़ापार ।।
करना धरना कुछ नहीं, केवल करते शोर ।
भज ले रे मन राम तू, कहते खुद को छोड़ ।।
रूप रंग जिसके नही, ना ही जिसके मोल ।
खास आम सब मांगते, पानी पानी बोल ।।
पानी से ही प्राण है, पानी से ही सृष्टि ।
पंचतत्व में एक है, खोल ज्ञान की दृष्टि ।।
शिक्षा की दुकान सजी, सीखो जो मन लाय ।
नैतिकता बस ना मिले, बाकी सब मिल जाय ।।
साथ चलो तुम वक्त के, वक्त छूट ना जाये ।
गुजर गया जो वक्त तो, वापस फिर ना आये ।।
यूं ही मेरी अंखिया, छलका देती नीर ।।
मेरा मेरा सब कहे, किसका है संसार ।
छोड़ इसे पर लोग क्यों, जाये बेड़ापार ।।
करना धरना कुछ नहीं, केवल करते शोर ।
भज ले रे मन राम तू, कहते खुद को छोड़ ।।
रूप रंग जिसके नही, ना ही जिसके मोल ।
खास आम सब मांगते, पानी पानी बोल ।।
पानी से ही प्राण है, पानी से ही सृष्टि ।
पंचतत्व में एक है, खोल ज्ञान की दृष्टि ।।
शिक्षा की दुकान सजी, सीखो जो मन लाय ।
नैतिकता बस ना मिले, बाकी सब मिल जाय ।।
साथ चलो तुम वक्त के, वक्त छूट ना जाये ।
गुजर गया जो वक्त तो, वापस फिर ना आये ।।
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