रेशम की इक डोर से, बांधे अमुवा डार ।
सावन झूला झूलती, संग सहेली चार ।।
सरर सरर झूला चले, उड़ती आॅचल कोर ।
अंग अंग में छाय है, पुरवाही चितचोर ।।
रोम रोम में है भरे, खुशियां लाख हजार ।
सावन झूला झूलती, संग सहेली चार ।।
नव नवेली बेटियां, फिर आई है गांव ।
बाबुल का वह द्वार है, वही आम का छांव ।।
छोरी सब इस गांव की, बांट रहीं हैं प्यार ।
सावन झूला झूलती, संग सहेली चार ।।
सावन पावन मास है, धरती दिये सजाय ।
हरियाली चहुॅ ओर है, सबके मन को भाय ।।
सावन झूला देखने, लोगों की भरमार ।
सावन झूला झूलती, संग सहेली चार ।।
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