1.
है नवरात
आस्था का महापर्व
जगमगात
ज्योति घट घट में
प्राणी प्राणी हर्शात ।।
2.
पापों का घेर,
मां भवानी तोडि़ये ।
सुनिये टेर,
स्नेह से प्रीत गूथ
इंसा इंसा जोडि़ये ।।
3.
तेरे नाम का
हमको है सहारा ।
भव सागर
एक अंधी डगर,
नही कोई हमारा ।।
4.
एक नजर
इधर भी देखिये ।
फैल रहें हैं,
भ्रश्टाचार की बेल,
मां इसे समेटिये ।।
5.
आपकी धरा
गगन भी आपका ।
कण-कण में,
आप ही आप बसे,
हर रूप है आपका ।।
है नवरात
आस्था का महापर्व
जगमगात
ज्योति घट घट में
प्राणी प्राणी हर्शात ।।
2.
पापों का घेर,
मां भवानी तोडि़ये ।
सुनिये टेर,
स्नेह से प्रीत गूथ
इंसा इंसा जोडि़ये ।।
3.
तेरे नाम का
हमको है सहारा ।
भव सागर
एक अंधी डगर,
नही कोई हमारा ।।
4.
एक नजर
इधर भी देखिये ।
फैल रहें हैं,
भ्रश्टाचार की बेल,
मां इसे समेटिये ।।
5.
आपकी धरा
गगन भी आपका ।
कण-कण में,
आप ही आप बसे,
हर रूप है आपका ।।
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