राजनीति के फेर में, बटे हुये हैं लोग ।
अपने अपने स्वार्थ में, बांट रहें हैं रोग ।।
कौन धर्म निरपेक्ष है, ढूंढ रहा है देश ।
वह लाॅबी इस्लाम का, यह हिन्दू का वेश ।।
वह हत्यारा सिक्ख का, जाने सारा देश ।
यह हत्यारा गोधरा, कैसे जाये क्लेश ।।
बने धर्मनिरपेक्ष वह, टोपी एक लगाय ।
दूजे को पूछे नही, नाम लेत शरमाय ।।
छाती छप्पन इंच यह, लगाम नही लगाय ।
बड़ बोलो के शोर से, रहे लोग भरमाय ।।
संविधान के मर्म को, समझे सारे लोग ।
सभी धर्म के मान को, मिलकर रखें निरोग ।।
संविधान के मर्म को, समझे सारे लोग ।
सभी धर्म के मान को, मिलकर रखें निरोग ।।
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