त्रिभंगी छंद
हे गौरी नंदन, प्रभु सुख कंदन, हे विघ्न हरण, भगवंता ।
गजबदन विनायक, शुभ मति दायक, हे प्रथम पूज्य, इक दंता ।।
हे आदि अनंता, प्रिय भगवंता, रिद्धी सिद्धी , प्रिय कंता ।
हे देव गणेषा, मेटो क्लेषा, शोक विनाषक, दुख हंता ।।
हे भाग्य विधाता, मंगल दाता, हे प्रभु भक्तन, हितकारी ।
तेरे चरण पड़े, सब भक्त खड़े, करते तेरो, बलिहारी ।।
हे बुद्धि प्रदाता, जग हर्षाता, बांटे प्रकाष, अभिसारी ।
हे गजमुख धारी, सुनो हमारी, दारूण क्रंदन, अतिभारी ।
नर तन पर सोहे, गजमुख तोहे, हे वक्रतुण्ड़, गणराजा ।
हे प्रभु लंबोदर, हस्त दण्ड़ धर, करते हो तुम, सब काजा
है तेरो वाहन, मूषाक भावन, आकाष धरा, पर छाये ।
है मोदक भाये, भक्तन लाये, दया आप ही, बरसाये ।
-रमेश चैहान
हे गौरी नंदन, प्रभु सुख कंदन, हे विघ्न हरण, भगवंता ।
गजबदन विनायक, शुभ मति दायक, हे प्रथम पूज्य, इक दंता ।।
हे आदि अनंता, प्रिय भगवंता, रिद्धी सिद्धी , प्रिय कंता ।
हे देव गणेषा, मेटो क्लेषा, शोक विनाषक, दुख हंता ।।
हे भाग्य विधाता, मंगल दाता, हे प्रभु भक्तन, हितकारी ।
तेरे चरण पड़े, सब भक्त खड़े, करते तेरो, बलिहारी ।।
हे बुद्धि प्रदाता, जग हर्षाता, बांटे प्रकाष, अभिसारी ।
हे गजमुख धारी, सुनो हमारी, दारूण क्रंदन, अतिभारी ।
नर तन पर सोहे, गजमुख तोहे, हे वक्रतुण्ड़, गणराजा ।
हे प्रभु लंबोदर, हस्त दण्ड़ धर, करते हो तुम, सब काजा
है तेरो वाहन, मूषाक भावन, आकाष धरा, पर छाये ।
है मोदक भाये, भक्तन लाये, दया आप ही, बरसाये ।
-रमेश चैहान
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