‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

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सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में

आज करवा चौथ पर अपनी अर्धांगिनी के प्रति उद्गार-


सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।
जिनगी तेरी खप गई, केवल मेरे प्यार में ।।

जब से आई ब्याह कर, मुझ पर मरती रह गई।
जीवन कष्टों को प्रिये, हॅंसते -हॅंसते सह गई ।।
शक्कर जैसे घुल गई, तू मेरे परिवार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

भोर भये से रात तक, कारज तेरा एक है ।
घर यह मेरा घर रहे, चाहत तेरी नेक है ।।
सास-ससुर भी तृप्त हो, मेरे इस घर-द्वार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

देवर तेरे बंधु सम,  और देवरानी बहन ।
हिलमिल रहती साथ में, ज्यों माला की हो सुमन ।।
टूटे बिखरे तुम नहीं, नाहक के तकरार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

बच्चों का पालन किए, ज्यों जीवन का खेल हो ।
काम किए ऐसे प्रिये, नातों का खुद से मेल हो ।।
तेरे सोच विचार से, सभी गुॅंथे संस्कार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

अपनी बातें क्या कहूॅं,  मैं तो तेरा प्राण हूॅं ।
जीवन के दुष्कर डगर, हंसी खुशी का तान हूॅं ।।
ऐसा कहती मौन हो, अंखियों के सत्कार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

मेरे प्रति उपवास है, श्रद्धा और विश्वास से ।
करे कामना एक ही, जीवन भरे उजास से ।।
प्रेम छोड़ कर कुछ नहीं, देने को उपहार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

-रमेश चौहान

शुभकामना

नित्य निरन्तर ध्येय पथ, पाद त्राण हो आपका ।
काव्य फलक के सूर्य सम, सम्य मान हो आपका ।।
बुद्धि प्रखर अरु स्वस्थ हो, राष्ट्र प्रेम पीयूष से ।
काया कल्पित स्वस्थ हो, मनोभाव सह तूष से ।।
(तूष-संतोष)
प्रेम जगत का प्राप्य हो, प्रेम सुवासित बाँट कर ।
शान्ति नित्य शाश्वत रहे, तन-मन पीड़ा छाँट कर ।।
सुयश अमर हो आपका, चेतन होवे लेखनी ।
वर्ण शब्द अरु भाव से,  व्यक्त काव्य हो पेखनी ।
(पेखनी-विशिष्ट तथ्य)
अपनों को भूले नहीं, मिट्टी रखें सम्हाल कर ।
चाहे हों धरती फलक, चाहे हों अट्टाल पर ।
-रमेश चौहान

//ममता स्मृति क्लब नवागढ, जिला बेमेतरा//


(उल्लाला छंद)

ममता स्मृति क्लब अति पुनित, ममता का ही मर्म है ।
प्रेम स्नेह ही बांटना, इसका पावन धर्म है ।।

डॉक्टर अजीत प्रेम से, घुले मिले थे गांव में ।
डॉक्टर हो वह दक्ष थे, कई खेल के दांव में ।।

प्यारी सुता अजीत की, प्यारी थी इस गांव को ।
सात वर्ष की आयु में, जो तज दी जग ठांव को ।।

उस ममता की स्मृति में, ग्रामीणों का कर्म है ।
जाति धर्म अंतर रहित, समरसता का मर्म है ।

शान नवागढ़ का यही, हम सबका मान है ।
चवालीस से अब तलक, बना हुआ पहचान है ।।

खेल-खेल में प्रेम का, सुधा नीर बरसा रही ।
बाल जवा अरू वृद्ध को, आज तलक हरषा रही । ।

खेल संगठन ही नही, यह इक केवल खेल का ।
सामाजिक संस्था रहा, ग्रामीणों के मेल का ।।

खेल कबड्डी खेल कर, रचा एक इतिहास है।
खेले वॉलीवाल भी, जिनका आज प्रकाश है ।।

नेत्र शिविर रचकर कभी, सुयश किये हैं गांव में ।
रक्तदान करके अभी, नाम किये हैं ठांव में ।।

खास आम सब गांव के, निर्धन अरू धनवान भी ।
सेवा करने आय जो, गांव के मेहमान भी ।

गढ़े पाठ सौहार्द के, ममता क्लब के हाथ हो।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख अरू, ईसाई सब साथ हो ।

जाने है इस मर्म को, खेल भावना धर्म है ।
समरसता बंधुत्व ही, ममता क्लब का कर्म है ।

पीपल औघड़ देव सम

पीपल औघड़ देव सम, मिल जाते हर ठौर पर ।
प्राण वायु को बांटते, हर प्राणी पर गौर कर ।।

आंगन छत दीवार पर, नन्हा पीपल झांकता ।
धरे जहां वह भीम रूप, अम्बर को ही मापता ।

कांव कांव कौआ करे, नीड़ बुने उस डाल पर ।
स्नेह पूर्ण छाया मिले, पीपल के जिस छाल पर ।।

छाया पीपल पेड़ का, ज्ञान शांति दे आत्म का ।
बोधि दिये सिद्धार्थ को, संज्ञा बौद्ध परमात्म का ।। बोधि-पीपल का वृक्ष 

भाग रहा धर्मांध तो, मानो वह इक भेड़ है ।
धर्म मर्म को जोड़ता, पीपल का वह पेड़ है ।।

यही देश अभिमान है

आजादी का पर्व यह, सब पर्वो से है बड़ा ।
बलिदान के नींव पर, देश हमारा है खड़ा ।।

अंग्रेजो से जो लड़े, बांध शीष पर वह कफन ।
किये मजबूर छोड़ने, सह कर उनके हर दमन ।।

रहे लक्ष्य अंग्रेज तब, निकालना था देश से ।
अभी लक्ष्य अंग्रेजियत, निकालना दिल वेश से।

आजादी तो आपसे, सद्चरित्र है चाहता ।
छोड़ो भ्रष्टाचार को, विकास पथ यह काटता ।।

काम नही सरकार का, गढ़ना चरित्र देश में ।
खास आम को चाहिये, गढ़ना हर परिवेष में ।।

झूठे लगते लोग सब, जब भी लेते हैं शपथ ।
आय छुपाते सरकार से, चल पड़ते हैं वह कुपथ ।।

कौन देश द्रोही यहां, कौन देश का भक्त है ।
कृत्य देख उनके भला, किसको कहें सशक्त है ।।

पोषित करते कौन हैं, आतंक के हर बीज को ।
चिन्हांकित तो कीजिये, कौन सींचतेे खीझ को ।।

मरना मिटना देश पर, नही एक पहचान है ।
जीना केवल देश हित, यही देश अभिमान है ।।

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