‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

है कौन सा जुनुन सवार तुझ पर


है कौन सा जुनुन सवार तुझ पर, जो कतले आम मचाते हो,
है कौन सा धरम तुम्हारा, जो इंनसानियत को ही नोच खाते हो ।

क्या मिला है  अभी तक आगें क्या मिल जायेगा,
क्यों करते हो कत्ले आम समझ में तुम्हे कब आयेगा ।

निर्बल, अबला, असहायों पर छुप कर वार क्यों करते हो,
अपने संकीर्ण विचारों के चलते, दूसरों का जीवन क्यों हरते हो ।

अपनों को निरीह मनुश्यों का मसीहा क्यों कहते हो,
जब उनके ही विकास पथ पर जब काटा तुम बोते हो ।

नहीं सुनना जब किसी की तो अपनी बात दूसरो पर क्यों मढ़ते हो,
लोकतंत्र की जड़े काट काट स्वयं तानाषाह क्यों बनते हो ।


कौन तुम्हे सीखाता ये पाठ जो कायरता तुम करते हो ,
कोई मजहब नहीं सीखता, खून से खेलना जो तुम खेला करते हो ।


............‘‘रमेश‘‘.........................

मेरी अर्धांगनी


प्यार करती है वह मुझको दुलार करती है,
 ख्याल करती वह हर पल मेरे लिये ही जीती है ।  

 डर से नजरें झुकाती नही सम्मान दिखाती है,
 साथ हर पल रह कर दुख सुख में साथ निभाती है ।
  
 लड़ाई नोक झोक से जीवन में उतार चढ़ाव लाती है,
 जिंदगी के हर रंग को रंगती जीवन को रंगीन बनाती है ।

वही मेरी प्रियसी मेरी जीवन संगनीय कहलाती है,
वही मेरी अर्धांगनी मेरे जीवन को परिपूर्ण बनाती है ।
..................‘‘रमेश‘‘.......................

पसीना बहाना चाहिये


दुनिया में दुनियादारी चलानी है, सभी रिस्तेदारी निभानी है,
दुनिया का आनंद जो लेनी है, तो पैसा कमाना चाहिये ।

सीर ऊचा करके जीना है, अपने में अपनो को जीना है,
अपने दुखों को सीना है, तो पैसा कमाना चाहिये ।

किसी से प्रेम करना है, किसी का दुख हरना है,
किसी को खुश करना है, तो पैसा कमाना चाहिये ।

तिर्थाटन  करना है, पर्यटन करना है,
दान करना है, तो पैसा कमाना चाहिये।

मन मे न रहे कोई बोझ, कैसे कमाना है तू सोच,
कमाई हो सफेद तो पसीना बहाना चाहिये ।  

..........रमेश........

वह


 वह,
सौम्य सुंदर,
एक परी सी ।
वह,
निश्चिल निर्मल,
बहती धारा सी ।
वह,
शितल मंद सुगंध,
बहती पुरवाही सी ।
वह,
पुष्प की महक,
चम्पा चमेली रातरानी सी ।
वह,
पक्षियों की चहक,
पपिहे कोयल मतवाली सी ।
वह,
श्वेत प्रकाश,
चांद पूर्णमासी सी ।
वह,
मेरी जीवन की आस,
रगो में बहती रवानगी सी ।
वह,
मेरा विश्वास,
जीवन में सांसो की कहानी सी ।
वह,
मेरा प्रेम,
श्याम की राधारानी सी ।
...‘‘रमेश‘‘.........

. हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन



     हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।
     मां कर दे हमारे पापा का शमन ।।


तू ही है अखिल विश्व माता ।
सारा विष्व तेरे ही गुन गाता ।।
अपने भक्तो का पुत्रवत करते हो जतन ।
हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।

तू ही सर्वशक्ति का आधार है ।
कोई न पाये तेरा पार है ।।
तेरी ही कृपा से ही है ये सारा चमन ।
तू करती सदा असुरी शक्ति का दमन ।
     हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।

शिव की तुम शिवा हो ।
बिष्णु की तुम रमा हो ।।
ब्रहमा की ब्रहमाणी एकतन ।
हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।

पहाड़ो में ही तेरा वास है ।
ऐसे भक्तों का विश्वास है ।।
जहां भक्त पहुंचते नाना जतन ।
हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।

तू तो शेरोवाली हो ।
तू तो मेहरेवाली हो ।।
तुझे रिझाने भक्त करते है कई करम ।
हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।

न मैं पूजा कर सकता न उपवास ।
मुझे केवल तेरे नाम की है आस ।।
तु तो जानती है हर भक्तो का मरम ।
हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।
.........‘‘रमेश‘‘...............

जनक भगवान समान


   
    जिसकी ऊंगली पकड़कर चलना सीखा,
    मेरे लिये जिसने  चला घोड़ा सरीखा ।

    मेरे चलने से जिसके मुँह से वाह निकला,
    मेरे गिरने पर जिसके मुँह से आह निकला ।

    मेरी हर छोटी बड़ी जरूरतों का जिसने रखा ध्यान,
    जिसने अपने मुॅंह का निवाला मुझ पर किया कुर्बान ।

     जीवन जीने का जिसने सलीखा सिखाया,
    जिसने पसीने का हर कतरा मेरे लिये बहाया ।

    जिसका खून जीवन बन मेरे नशों में दौडता है,
    मेरा अंग प्रतिअंग बस......... यही कहता  है।

    जिसने  अपना जीवन मुझे अर्पित किया
    जिसने मुझे स्‍नेह, प्रेम, वात्‍सल्‍य दिया ।
   
    जो मेरे लिये सारी दुनिया से है महान
    वह है मेरे जनक......भगवान समान ।।


.................रमेश.....................

हे भगवान मुझे टी.वी. बना दे


  
       
मंदिर में मत्था टेकने बहुत लोग जाते हैं,
और अपने मन की मुराद अपने मन में दुहराते हैं ।

एक बार एक बच्चा अपने मां बाप के साथ मंदिर आया,
सबको भगवान के सामने घुटने टेक बुदबुदाते हुये पाया ।
बच्चा ये देख कुछ समझ नही पाया उसने मां से फरमाया,
मन में जो हो इच्छा यहां कह दो भगवान सब देते है मां ने बताया ।

बच्चे के कोमल चित में एक कल्पना जागा,
उसने भगवान से खुद को टीवी बनाने का वरदान मांगा ।

पास खडे़ पंडि़तजीने बच्चे बात सुनकर उनसे पूछा,
बोल बेटा तुम्हे टीवी बनने को क्यो सुझा ।

बच्चे ने कहा जब मैं टीवी बनजाऊंगा,
अपने पूरे परिवार का प्यार मैं पाऊंगा ।

बिना बाधा के सब मुझको प्यार से निहारेंगें,
मम्मी पापा एक साथ दोनों मुझे देखने पधारेंगे ।

मम्मी की चहेती सिरीयल बन मैं इतराऊंगा,
समाचार क्रिकेट बन मैं पापा के आंखों का तार हो जाऊंगा ।

जब कभी मैं अस्वस्थ हो चला तो,
मम्मी पापा काम पर नहीं जायगें, दौड़कर मुझे ठीक करायेंगे ।

मेरी दीदी जो मुझसे रोज लडती रहती,
अब मेरे पास बैठ मुस्कुराएगी, अब नही सतायेगी ।
बच्चे की व्यथा कथा सुनकर पंडि़तजी बोला शालीन,
बेटा तू तो सुंदर मनुष्य है फिर क्यों बनना चाहते हो मशीन ।

अभी भी तो मैं मशीन हूॅ जो रिमोट से चलाया जाता हूॅ,
घर से स्कूल और स्कूल से घर बस से पहुंचाया जाता हूॅ ।

स्कूल में पढाई, घर में होमवर्क फिर टयूशन चला जामा हूॅ,
दिन भरे बस्ते का बोझ ढ़ो शाम को पापा का ड़ांट खाता हूॅ ।

न खेलने की आजादी न घुमने की शौक पूरा कर पाता हूॅ,
पढ़ाई पढ़ाई बस पढ़ाई के बोझ से ही मै मरे जाता हूॅ ।

मम्मी की आफिस और पापा का काम इनका भी साथ कहां पाता हूॅ,
मनुष्य होकर भी मशीन होने से अच्छा टीवी बनना चाहता हूॅ ।

सुन कर बच्चे की बातें पंडि़त जी ने राधे राधे कहके मन को शांत किया,
पास खड़ी मां रोते रोते बच्चे गोद में ले भगवान को प्रणाम किया ।
.................रमेश.....................

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