‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

एक सौ एक हाइकू

1.    हे गजानन
    कलम के देवता
    रखना लाज ।

2.    ज्ञान दायनी
    हर लीजिये तम
    अज्ञान मेट ।

3.    आजादी पर्व
    धर्म धर्म का पर्व
    देश  का गर्व.   

4.    पाले सपना ?
    आजादी के सिपाही
    मिले आजादी ?

5.    स्वतंत्र तंत्र
    विचार परतंत्र
    देश स्वतंत्र ?

6.    कहां है खादी ?
    कैसे भरे संस्कार ?
    गांधी विचार ।
   
7.    मानव कढ़े
    हर चेहरा पढ़े
    विकास गढ़े ।
   

8.    राजनीतिज्ञ,
    कुशल अभिनेता,
    मूक दर्शक।

9.    कुटनीतिज्ञ
    कुशल राजनेता
    मित्र ही शत्रु ।

10.    शकुनी नेता
    लोकतंत्र चैसर
    बिसात लोग

11.    लोकराज है
    लोभ मोह में लोग
    क्यो करे शोक

12.    अपनत्व है ?
    देश से सरोकार ?
    सब बेकार ।

13.    धड़क रही
    दिल की धड़कन,
    तेरे प्यार में ।

14.    हे अनुराग,
    प्रेम एक पूजा है,
    स्वच्छ निर्मल ।

15.    श्वास प्रश्वास
    अधर पर नाम
    स्नेही साजन ।

16.    प्रीत की रीत,
    जल मरे पतंगा
    सुधा पीकर ।

17.    चांद विहिन
    पूर्णमासी का रात,
    तू मेरी चांद ।

18.    तेरे बीना मै,
    तेल बीन दीपक,
    वजूदहीन ।

19.    मन की साथी,
    चिडि़या हो चहको,
    खुला आंगन ।

20.    सारे जहां में
    भारत यशगान
    गीत बन गया ।

21.    आतंकवाद
    गर्दन रेत कर,
    करे संवाद ।

22.    घोसले जैसे
    बनते बिखरते
    क्यों परिवार ?

23.    सात जन्मो का,
    मान्यता स्वीकारे जो
    तलाक मांगे ।

24.    काम व पैसा,
    तेरा सब कुछ है,
    ईश्वर नही ।

25.    ईश्वर सदा,
    कण कण बसता,
    हवा स्वास सा ।

26.    संस्कारी बन,
    संस्कृति संवाहक,
     भारतवासी ।

27.    अनुभव से,
    ता उम्र सीखा जीना,
    पेड़ समान ।

28.    मुझसे प्यार,
    कोई करे न करे,
    मैं तो करूंगा ।

29.    गोताखोर मै,
    दिल की गइराई
    समुद्र तल ।

30.    ढूंढ रहा मै
    अनंत गहराई
    कहां समाई ?

31.    सादा जीवन,
    मर्यादित पिंजरा,
    कैद सज्जन ।

32.    लक्ष्मण रेखा,
    लांघ सके है कौन,
    दैत्य रावन । 

33.    जीवन है क्या ?
    मन का यक्ष प्रश्न
    सुख या दुख ।

34.    मनबावला
    पथ भूला राही है,
    जग भवर ।
       
35.    देख दुनिया,
    जीने का मन नही,
    स्वार्थ के नाते ।

36.    मन भरा है,
    ऐसी मिली सौगात,
    बेवाफाई का ।

37.    वाह रे धोखा,
    अपने ही पराये,
    मित्र ही शत्रु ।

38.    तू भी पूता है ?
    मित्रता के रंग में,
    कहां है जुदा ?

39.    क्यों रोता है ?
    सिक्के के दो पहलू
    होगी सुबह ।

40.      प्रेम की रीत,
    हार में ही है जीत,
    हारना सीख ।

41.    प्रेम क्या है ?
    भावों का समर्पण
    स्वप्रस्फूटित ।

42.    वियोग क्या ?
    प्रेम की गहराई
    तैराक मन ।

43.    हे भगवान,
    प्रेम का भूखा तू भी,
    प्रेम ही पूजा ।

44.    मीड डे मील,
    बच्चे हैं बुद्धिहिन,
    कैसी योजना ।

45.    ये शिक्षानिति
    हमारी पाठशाला,
    प्रयोग शाला ।

46.    मीड डे मील,
    मौत के सौदागर
    मासूम बच्चे ।

47.    हे मुफ्तखोर
    भ्रष्टाचारी मानव,
    निज मान है ?

48.    झूमा सावन,
    आसुओं की है झड़ी
    प्रतिक्षा शेष ।

49.    फैला प्रकाश
    चमकती बिजली
    मन उदास

50.    बरसे मेघ
    टपकता छप्पर
    गरीब घर

51.    बाढ़ का पीर
    सड़को पर नीर
    बेबस जन

52.    बद्री केदार,
    हिमालय प्रकोप
    आस्था का मारा

53.    विष्णु सा वह,
    ब्रह्मा महेश वह,
     गुरू जो वह

54.    स्वर्ग का पथ
    चरित्र व्यवहार
    निर्माता गुरू

55.    एक चेहरा
    जाना पहचाना सा
    अनजाना है ।

56.    सुनता कोई,
    गुनगुनाता है कोई
    मैं तो मौन हूं ।
57.    सुस्त रूपया
    लुड़कता बाजार
    देश बेहाल ।

58.    सीमा की सीमा
    खो रही पहचान
    चीन शैतान ।

59.    सावन लाये
    रिमझिम फुहार
    दिल बीमार

60.    बदली छाई
    धरती मुस्कुराई
    प्यास  बुझाई

61.    खेती का काम
    करते हैं किसान
    पालनकर्ता ।

62.    दोस्त रूठा है
    करूं क्या जतन मैं
    कोई बताये ।

63.    भ्रष्ट प्रत्याशी
    लालची मतदाता,
    लोकतंत्र है ?

64.    पढ़े लिखे हो ?
    डाले हो कभी वोट ?
    क्यो देते दोष ??

65.    देख लो भाई,
    कौन नेता  चिटर ?
    तुम वोटर ।

66.    अमीट स्याही
    खामोश रहकर
    करते चोट ।

67.    क्यों मानते हो ?
    ये देश तुम्हारा है ?
    मौन क्यों भाई ??

68.    सुन रे आली,
    मैं बाग का हूं माली,
    सजाओ थाली ।

69.    ढूंढते हुये
    भ्रष्टाचार का पथ
    खुद खो गया ।

70.    हम आजाद
    वे सभी कह रहे
    मर्यादाहीन

71.    स्वतंत्र देश
    परतंत्र शसक
    ये कैसा नाता ?

72.    तन कैद में
    मन आजाद रखे
    मेरे शहीद ।

73.    देख तमाशा
    नेता मांगते भीख
    लोकतंत्र है ।

74.    जांच परख
    आंखो देखी गवाह
    तुम्ही हो जज ।

75.    खोलता वह
    आश्वासनों का बाक्स
    सम्हलो जरा ।

76.    कागजी फूल
    चढ़ावा लाया वह
    हे जन देव ।

77.    मदिरा स्नान
    गहरा षडयंत्र
    बेसुध लोग ।

78.    चुनोगे कैसे ?
    लड़खड़ाते पांव
    ड़ोलते हाथ ?

79.    होश में ज्ञानी
    घर बैठे अज्ञानी
    निर्लिप्त भाव ।

80.    जड़ भरत
    देश के बुद्धिजीवी
    करे संताप ।
   
81    वह आदमी
    बकबक कर रहा
    मदहोश हो ।

82.    टूटता घर,
    अपना परिवार,
    स्नेह दुलार ।

83.    रूठे अपने,
    टूट रहे सपने,
    ढूंढे छुपने ।

84.    कहीं दिखे है ?
    एकसाथ हैं भाई ?
    दुलार करें ।
85.    संस्कार लुप्त,
    परम्परा सुसुप्त
    कौन है तृप्त ?

86.    संस्कार क्या है ?
    कौन नही जानता ?
    कौन मानता ??

87.    नवाचारीय,
    कैसे बनी कुरीति ?
    अपनी रीति ।

88.    मान सम्मान,
    परम्परा का पालन
    मनभावन ।

89.    आत्म सम्मान
    प्राणों से बढ़कर
    बचा लो तुम ।

90.    हिन्द की हिन्दी
    जन मन की जुबा
    होगी की नही ?

91.    बुरा नही है
    ज्ञान जो हम जाने
    इस जग का ।

92.    देश की चिंता
    हमें भी हैं करना
    बन सपूत ।

93.    बने विजेता
    निज मन जो जीते
    विश्व विजेता ।

94.    काशी जो छाये
    शरद ऋतु आये
    प्रेम जगाये ।

95.    जान लो मुझे
    तेरे ही घटवासी
    मै अविनाशी ।

96.    नन्हा बालक
    भगवान समान
    स्वच्छ निर्मल ।

97.    धूप छांव सा
    जीवन बगिया में
    सुख दुख है ।

98.    झोंको के साथ
    झूमके नन्हा पौधा
    खड़ा रहता ।

99.    छोड़ मां बाप
    मनाये बद्रीनाथ
    पूत आज के ।

100.    लोक मर्यादा
    परिधान समान
    सज्जन ओढ़े ।

101.    अनुशासन
    कोई रोके न टोके
    निज अंकुश

सत्यमेव जयते (छप्पय छंद)

सत्य नाम साहेब, शिष्य कबीर के कहते ।
राम नाम है सत्य, अंत पल तो हम जपते ।।
करें सत्य की खोज, आत्म चिंतन आप करें ।
अन्वेषण से प्राप्त, सत्य को ही आप वरें ।।
शाश्वत है सत्य नष्वर जग, सत्य प्रलय में षेश है ।
सत्यमेव  जयते सृश्टि में, शंका ना लवलेष है ।।

असत्य बन कर मेघ, सत्य रवि ढकना चाहे ।
कुछ पल को भर दंभ, नाच ले वह मनचाहे ।।
मिलकर राहू केतु, चंद्र रवि को कब तक घेरे ।
चाहे हो कुछ देर, अंत जीते सत तेरे ।।
सत्य सत्य ही तो सत्य है, सत बल सृष्टि विशेषहै ।
सत्यमेव  जयते सृशष्टि में, शंका ना लवलेश है ।।

पट्टी बांधे आंख, ढूंढ़ते सत को मग में ।
अंधेरे का साथ, निभाते फिरते जग में ।।
उठा रहे हैं प्रश्न, कौन सच का साथी है ।
कहां जगत में आज, एक भी सत्यवादी है ।।
सत्यवादी तो खुद आप है, तुम में जो सच शेष है ।
सत्यमेव  जयते सृष्टि में, शंका ना लवलेश है ।।

सावन (गीतिका छंद)

हर हर महादेव
.....................
माह सावन है लुभावन, वास भोलेनाथ का ।
आरती पूजा करे हम, व्रत भी भोलेनाथ का ।।
लोग पार्थिव देव पूजे, नित्य नव नव रूप से ।
कामना सब पूर्ण करते, ले उबारे कूप से ।।

-रमेशकुमार सिंह चौहान

सावन

ये रिमझिम सावन, अति मन भावन, करते पावन, रज कण को ।
हर मन को हरती, अपनी धरती, प्रमुदित करती, जन जन को ।
है कलकल करती, नदियां बहती, झर झर झरते, अब झरने ।
सब ताल तलैया, डूबे भैया, लोग लगे हैं, अब डरने ।।
--------------------------------------------------------
-रमेशकुमार सिंह चौहान

दोहे -रूपया ईश्वर है नही

काम काम दिन रात है, पैसे की दरकार ।
और और की चाह में, हुये सोच बीमार ।।

रूपया ईश्वर है नही, पर सब टेके माथ ।
जीवन समझे धन्य हम, इनको पाकर साथ ।।

मंदिर मस्जिद देव से, करते हम फरियाद ।
अल्ला मेरे जेब भर, पसरा भौतिक वाद ।।

निर्धनता अभिशाप है, निश्चित समझे आप ।
कोष बड़ा संतोष है, मत कर तू संताप ।।

धरे हाथ पर हाथ तू, सपना मत तो देख ।
करो जगत में काम तुम, मिटे हाथ की रेख ।।

बात नही यह दोहरी,  है यही गूढ ज्ञान ।
धन तो इतना चाहिये, जीवन का हो मान ।।
.....................................
-रमेशकुमार सिंह चौहान

मेरे नगर नवागढ़ में बाढ़ का एक दृश्य



गीतिका छंद
 .............................................

मेघ बरसे आज ऐसे , मुक्त उन्मुक्त सा लगे ।
देख कर चहु ओर जल को, देखने सब जा जुटे ।।
नीर बहते तोड़ तट को, अब लगे पथ भी नदी ।
गांव घर तक आ गया जल, है मची कुछ खलबली ।।

हाट औ बाजार में भी, धार पानी की चली ।
पार करते कुछ युवक तो, मौज मस्ती में गली ।।
ढह गये कुछ घर यहां पर, जो बने थे तट नदी ।
जो नदी को रोक बैठे, सीख कुछ तो ले अभी ।
-रमेशकुमार सिंह चौहान

दोहे


लाभ हानि के प्रश्न तज, माने गुरु की बात ।
गुरु गुरुता गंभीर है, उलझन झंझावात ।।

सीख सनातन धर्म का, मातु पिता भगवान ।
जग की चिंता छोड़ तू, कर उनका सम्मान ।।

पढ़े लिखे हो घोर तुम, जो अक्रांता सुझाय ।
निज माटी के सीख को, तुम तो दिये भुलाय ।।

अपनी सारी रीतियां, कुरीति होती आज ।
परम्परा की बात से, तुमको आती लाज  ।।

इतने ज्ञानी भये तुम, पूर्वज लागे मूर्ख ।
बनके जेंटल मेन अब, कहते सबको धूर्त ।।

माना तेरे ज्ञान से, सरल हुये सब काम ।
पर समाज परिवार तो, रहा नहीं अब धाम ।।

गुरु गुरुता समझे नहीं, पाल रहे गुरुवाद ।
ध्‍येय धर्म को धरे नहीं, गढ़े पंथ नवजात ।।

Blog Archive

Popular Posts

Categories