‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

//मां भारती पुकारे //



जागो जागो वीर सपूतो. माँ भारती पुकारे ।
आतंकी बनकर बैरी फिर. छुपछुप है ललकारे ।।

उठो जवानो जाकर देखो. छुपे शत्रु पहचानो ।
मिले जहाँ पर कायर पापी. बैरी अपना मानो ।।

काट काट मस्तक बैरी के. हवन कुण्ड पर डालो।
जयहिन्द मंत्र उद्घोष करो. जीवन यश तुम पा लो ।।

जिनके मन राष्ट्र प्रेम ना हो. बैरी दल के साथी ।
स्वार्थी हो जो चलते रहते. जैसे पागल हाधी ।।

छद्म धर्म जो पाले बैठे . जन्नत के ले चाहत ।
धरती को जो दोजक करते. उनके बनो महावत ।।

बैरी के तुम छाती फाड़ों. वीर सिंह के लालों ।
रक्तबीज के ये वंशज हैं. इन्हें अग्नि पर डालो ।।
-रमेश चौहान-

करते क्यों तकरार

तन पाने के पूर्व ही. किये प्यार हो आप ।
अपने अनुरुप छांट कर. पाये हो माँ बाप ।।
फिर क्यों तुम यह मानते. पहले होवे प्यार ।
शादी के पहले भला. करते क्यों तकरार ।।
लडते रहते है सभी. बंधु बहन तो लाख ।
भागे ना घर छोड़ कर. देह किये ना खाख॥
सुनकर पति के बात क्यों. छोडे पति के द्वार ।
ससुरे आंगन छोड़ कर. बैठी वह मझदार ।
-रमेश चौहान

अविश्वास

//चोका//
घरेलू हिंसा
नीव खोद रहा है
परिवार का
अस्तित्व खतरे में
अहम बोले
वहम पाले रखे
सहनशक्ति
खो गया कहीं पर
शिक्षा के आए
जागरूकता आए
प्यार विश्वास
सहमा डरा हुआ
कानून देख
एक पक्षीय लागे
पहचान खो
ओ पति पत्नी
एक दूजे को यहाॅं
खूब आंख दिखाये ।
-रमेश चौहान

राम नाम है सत्य

नश्वर इस संसार में, राम नाम है सत्य ।
हर जीवन के अंत का, होत एक ही गत्य ।
होत एक ही गत्य, प्राण जब तन को छोड़े ।
आत्म मुग्ध हो आत्म, जगत से नाता तोड़े ।।
सुन लो कहे ‘रमेश‘, रामसीता भज सस्वर ।
कर लो निज पहचान, दृश्य दुनिया है नश्वर ।।

स्वप्न अधूरे शेष हैं

जाते जाते कह गये, सच्चे मनुज कलाम ।
स्वप्न अधूरे शेष हैं, करने को हैं काम ।।
करने को हैं काम, डगर बच्चों चुन लो ।
देश हमारा एक, बात अच्छे से गुन लो ।।
गढ़ना हो जब देश, धर्म आडे ना आते ।
रखो राष्ट्र सम्मान, दिये सिख जाते जाते ।।

बने क्यों इंसा दानव

मानव क्यों समझे नही, मानवता का मर्म ।
मानव मानव एक है, मानवता ही धर्म।
मानवता ही धर्म, नहीं जो मन में धारे ।
मानवता के शत्रु, आज मानव को मारे ।।
क्यों पनपे आतंक, बने क्यों इंसा दानव ।
धर्म धर्म में द्वेष, रखे आखिर क्यों मानव ।।
-रमेश चौहान

लड़ना है मुझको


मैं
नही
चाहता
बिना लड़े
शहिद होना
युद्ध चाहता हूॅ
शत्रुओं को मारने ।।1।।

मैं
नहीं
कायर
शत्रुओं सा
बुजदिल भी
आमने-सामने
लड़ना है मुझको ।।2।।
-रमेश चौहान

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