‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

प्रश्न लियें हैं एक

मातृभूमि के पूत सब, प्रश्न लियें हैं एक ।
देश प्रेम क्यों क्षीण है, बात नही यह नेक ।।
नंगा दंगा क्यों करे, किसका इसमें हाथ ।
किसको क्या है फायदा, जो देतें हैं साथ ।।
किसे मनाने लोग ये, किये रक्त अभिषेक । मातृभूमि के पूत सब
आतंकी करतूत को, मिलते ना क्यों दण्ड ।
नेता नेता ही यहां, बटे हुये क्यों खण्ड़ ।।
न्याय न्याय ना लगे, बात रहे सब सेक । मातृभूमि के पूत सब
गाली देना देश को, नही राज अपराध ।
कैसे कोई कह गया, लेकर मन की साध ।।
आजादी का अर्थ यह, हुये क्यों न अतिरेक । मातृभूमि के पूत सब
मतदाता क्या भेड़ है, नेता लेते हाॅंक ।
वोट बैंक के नाम पर, छान रहें हैं खाॅंक ।
टेर टेर क्यो बोलते, हो बरसाती भेक । मातृभूमि के पूत सब
खण्ड़ हुये बहुसंख्य के, अल्प नही अब अल्प ।
भेद भाव को छोड़ कर, किये न काया कल्प।।
हीन एक को क्यों किये, दूजे रखे बिसेक । मातृभूमि के पूत सब
हिन्दू मुस्लिम हिन्द के, भारत मां के लाल ।
राजनीति के फेर में, होते क्यों बेहाल ।
राज धर्म के काज को, करते क्यो ना स्व-विवेक। मातृभूमि के पूत सब
सीमा पर सैनिक डटे, संगीन लिये हाथ ।
शीश कफन वह बांध कर, लड़े शत्रु के साथ ।
घर में बैरी देख कर, क्लेष हुये उत्सेक । मातृभूमि के पूत सब
(उत्सेक -वृद्वि या ज्यादा)
जागो जागो लोग अब, राग-द्वेष को छोड़ ।
प्रेम देश से तुम करो, साॅठ-गाॅंठ सब तोड़ ।।
आप देश से आप हो, देश आप से हेक । मातृभूमि के पूत सब
(हेक-एक)

सज्जन

नम्र अमीरी में रहें, जैसे रहते दीन ।
धनी दीनता में रखें, उदारता शालीन ।
रूख हवा का देख कर, बदले ना जो राह ।
सज्जन उसको जानिये, निश्चित चिरकालीन ।।
-रमेश चौहान

देश पर जीते मरते

कण कण मेरे देश का, ईश खुदा का रूप ।
खास आम कोई नही, जन जन प्रति जन भूप ।।
जन जन प्रति जन भूप, प्राण हैं अर्पण करते ।
सभी सिपाही देश, देश पर जीते मरते ।।
फसे शत्रु के फेर, लोग कुछ हारे तन मन ।
उन्हें लाओं राह, पुकारे पावन कण कण ।।

शिक्षा नीति परीख

शिक्षा सबको चाहिये, मिले सभी को सीख ।
सीख रोग से मुक्त हो, बने नही यह बीख ।।
बीख बोय कुछ लोग हैं, घृणा किये निज देश ।
देश प्रेम हो मूल में, शिक्षा नीति परीख ।

गढ़ें जन मन सौहार्द

माँ शारद के पूत हो, धरो लेखनी हाथ ।
मानवता के गीत लिख, दीन हीन के साथ ।।
दीन हीन के साथ, शब्द सागर छलकाओ ।
हर मुख पर मुस्कान, नीर सम तुम बरसाओ ।।
सत्य सुपथ के शब्द, गढ़ें जन मन सोहारद ।
भुलना नहीं ‘रमेश‘, मातु तेरी माॅ शारद ।।

*सोहारद-सौहार्द

छूट फूट का मूल है

एक पेड़ के डाल सब, कोई नही विशेष
विशेषता जड़ की यही, भेदभाव ना शेष ।।
शेष नही है कामना, मिले उसे कुछ छूट
छूट फूट का मूल है, पैदा करते क्लेश ।।

आरक्षण का भूत

सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक

संविधान की बात है, काहे का छुवाछूत
छुवाछूत अवरोध है, सब इंसा के पूत
पूत सभी इस देश के, कोई नही विशेष
विशेषता क्यों चाहिये, आरक्षण का भूत ।।

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