‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

ममता

ममता ममता होत है, नर पशु खग में एक ।
खग के बच्चे कह रहे, मातु हमारी नेक ।
मातु हमारी नेक, रोज दाना है लाती ।
अपने पंख पसार, मधुर लोरी भी गाती ।
वह मुख से मुख जोड़, हमें सिखलाती समता ।
जीवन के हर राह, काम आती है ममता ।।

मांगे बिन भी दे रहे

मांगे बिन भी दे रहे, माता पिता दहेज ।
स्टेटस मोनो मान कर, करे कहां परहेज ।।
करे कहां परहेज, दिये भौतिक संसाधन ।
सिखलाये अधिकार, आत्म रक्षा के साधन ।
अनुशासन कर्तव्य, रखे अपने घर टांगे ।
दिये नही संस्कार, बेटियों को बिन मांगे ।।

रखें संतुलित सृष्टि

सूर्य ताप से ये धरा, झुलस रही है तप्त ।
गर्म तवे पर तल रहे, जीव जीव अभिसप्त ।।
जीव जीव अभिसप्त, कर्म गति भोगे अपना ।
सृष्टि चक्र को छेड़, देख मनमानी सपना ।
हाथ जोड़ चौहान, निवेदन करे आप से ।
रखें संतुलित सृष्टि, बचे इस सूर्य ताप से ।।
- रमेश चौहान

पीर का तौल नही है

तौल नही है पीर का, नहीं किलो अरु ग्राम ।
प्रेमी माने पीर को, जीवन का स्वर-ग्राम ।।
जीवन का स्वर-ग्राम, प्रीत की यह तो भगनी ।
अतिसय प्रिय है प्रीत, कृष्ण की जो है सजनी ।।
प्रीत त्याग का नाम, गोपियां कौल कहीं है ।।
प्राण प्रिया है पीऱ, पीर का तौल नही है ।

भजते तब तब राम

भौतिक सुख में  हो मगन, माना कब  भगवान ।
अब तक तुम कहते रहे, ईश्वर शिला समान ।
ईश्वर शिला समान, पूजते नाहक पाहन ।
घेरे तन को कष्ट, लगे करने अवगाहन ।।
औषध करे न काम, दुआ करते तब कौतिक ।
भजते तब तब राम, छोड़ सुख सारे भौतिक ।।

आॅखों की भाषा समझ

आॅखों की भाषा समझ, आखें खोईं होश ।
चंचल आखें मौन हो, झूम रहीं मदहोश ।
झूम रहीं मदहोश, मूंद कर अपनी पलकें ।
स्वर्ग परी वह एक, समेटे अपनी अलकें ।।
हुई कली जब फूल, खिली मन में अभिलाषा । ।
मन में भरे उमंग,समझ आॅखों की भाषा ।।

-रमेश चैहान

उलचे कितने नीर

      पानी के हर स्रोत को, रखिये आप सहेज ।
      व्यर्थ बहे ना बूॅद भी, करें आप परहेज ।।
     
      वर्षा जल को रोकिये, कुॅआ नदी तालाब ।
      इन स्रोतो पर ध्यान दें, तज नल कूप जनाब ।।
 
      कुॅआ बावली खो गया, गुम पोखर तालाब ।
      स्रोत सामुदायिक नही, खासो आम जनाब ।।
 
      स्रोत सामुदायिक कभी, बांट रहा था प्यार ।
      टैंकर आया गांव में, लेकर पहरेदार ।।
 
      खींचे जल जल-यंत्र से, धरती छाती चीर ।
      स्वेद बूॅद तन पर नही, जाने कैसे पीर ।।
 
      रस्सी बाल्टी हाथ से, उलचे कितने नीर ।
      एक कुॅआ था गांव में, मानों सागर क्षीर ।।
 
      घाट घाट तालाब में, नदी नदी में घाट ।
      पाल रखे थे गांव को, पाले राही बाट ।।
 
      अपनी गलती झांक ले, कहां गांव का प्यार ।
      बात बात में कोसते, दोषी यह सरकार ।।

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