सबसे पहले देश है, समझें इसका मर्म ।।
जिसको अपने देश पर, होता ना अभिमान ।
कैसे उसको हम कहें, एक सजग इंसान ।।
हांड मांस के देह को, केवल मिट्टी जान ।
जन्म भूमि के धूल को, जीवन अपना मान ।।
Ramesh Kumar Chauhan
विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।
Manwata kaha hai ?
AAPNI AAKHO SE DEKHO
MAI DESH KA ..
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
पाँव-पाँव चलता चल भक्ता, बन जायेगा तेरा कल ।।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
कावर साजो अथवा पिठ्ठुल, साजो पहले निज मन ।
बोल बम्म के नारोंं से, ऊर्जा भरलो अपने तन ।
बैद्यनाथ कामना लिंग है, देंगे तुझको वांक्षित बल ।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
उत्तर वाहिनी गंज गंगा, लेकर इसके पावन जल ।
अजगैबीनाथ पाँव धर कर, चल रे भक्ता चलता चल ।
चाफा मनिहारी गोगाचक, कुमारसार पथ बढ़ता चल ।।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
जिलेबिया नाथ टगेश्वर चल, बढ़ता चल चल सुइया पथ
शिवलोक भूल भुलईया, दर्शनिया तक तन को मथ ।
फिर शिवगंगा बाबानगरी, देगें तुझे शांति के पल ।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
चाहे पड़े पाँव में छाले, चाहे चूर-चूर हो तन ।
बोल बम्म कहता चल भक्ता, बाबा काे धरकर मन ।
बैद्यनाथ की महिमा प्यारी, भर देंगे तुझमें बल।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
नन्हे नन्हे बालक चलते, चलते लाखों नारी नर ।
झूम झूम कर बोल रहे सब, हर बोल बम्म बढ़-चढ़ कर ।
बीस कोस की भुइया पैदल, चल रहे सभी हैं प्रतिपल ।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
कावड़िया चल देवघर, बोल बम्म शिव बम्म ।
बैजनाथ के श्री चरण, भक्त लगा के दम्म ।।
चल चल रे कावड़िया चल चल, बैजनाथ के द्वारे ।
शिव का आया आज बुलावा, जागे भाग हमारे ।।
कांधे कावर गंगा जल धर, मन में श्रद्धा निर्मल ।
नंगे पांव चले चल प्यारे, जैसे नदियां कल-कल ।।
हर हर महादेव हर हर, हर हर शिव ओंकारा ।
बोल बम्म बोल बम्म हर हर, गूंज रहा है नारा ।।
पुनित मास सावन बाबा के, लगा हुआ है मेला ।
बोल बम्म जयकारों से मन, नाच रहा अलबेला ।।
अवघर दानी शम्भू सदाशिव, सफल मनोरथ करते ।
हाथ पसारे जो नर मांगे, बाबा झोली भरते ।
बोल बम्म के गूंज से, गूंज रहा है व्योम ।
जय जय भोलेनाथ जय, जय शिवशंकर ओम ।
आदि देव ओंकार शिव, सकल सृष्टि के कंत ।
जगत उपेक्षित जीव के, प्रियवर शिव भगवंत ।।
महाकाल अवलंब जग, जीवन शाश्वत सत्य ।
निराकार ओंकार शिव, रूप गूढ़ आनंत्य ।।
जटा सोम गंगा पुनित, आदि शक्ति अर्धांग ।
नील वर्ण ग्रीवा गरल, जग व्यापक धवलांग ।।
कंठ ब्याल अँग भस्म रज, हस्त बिच्छु विष डंक ।
संग भूत बेताल बहु, फिर भी भक्त निशंक ।।
आषुतोष शंकर सरल, अवघरदानी देव ।
श्रद्धा अरु विश्वास धर, भक्त करें हैं सेव ।।
चरण-शरण प्रभु लीजिये, हम माया आसक्त ।
पूजन विधि जाने नही, पर हैं तेरे भक्त ।।
अटल अटल है आपका, ध्रुव तरा सा नाम । बोल रहा हर गांव में, पहुंच सड़क का काम ।। जोड़ दिए हर गांव को, मुख्य सड़क के साथ। गांव शहर से जब जुड़ा...